कई स्वास्थ्य विकार तनाव, खराब नींद, अनियमित भोजन और अस्वास्थ्यकर खान-पान की आदतों के कारण होते हैं। खराब जीवनशैली कब्ज और बार-बार होने वाले दस्त सहित पाचन संबंधी समस्याओं में योगदान कर सकती है, और ये समस्याएं समय के साथ खराब होकर गुदा विदर (एनल फिशर – anal fissure) का कारण बन सकती है। आयुर्वेद में इन समस्याओं का अचूक इलाज मौजूद है। जात्यादि तेल एक पारंपरिक आयुर्वेदिक तेल है, जो घावों और एनल फिशर को ठीक करने के लिए जाना जाता है।
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जात्यादि तेल क्या है? – (What is Jatyadi Tel (Oil) in hindi?)
जात्यादि तेल (jatyadi tel) एक आयुर्वेदिक हर्बल तेल है, जिसका उपयोग शरीर के घाव भरने की प्रक्रिया को बहाल करने और मजबूत करने के लिए बाह्य रूप से किया जाता है। इस तेल को शरीर की बाहरी सतह पर लगाने से अधिकांश प्रकार के घाव ठीक हो जाते हैं और उनमें से खून निकलना भी बंद हो जाता है। इस तेल के सभी तत्व घावों को कीटाणुरहित करने और घाव भरने की प्रक्रिया (healing process) शुरू करने में सहायक हैं।
इस तेल का उपयोग अक्सर एनल फिशर, बवासीर और एनल फिस्टुला में घावों के इलाज के लिए किया जाता है। यह उपचार प्रक्रिया को कुशलतापूर्वक तेज करता है और घावों के शीघ्र भरने को बढ़ावा देता है। इसके अलावा, यह तेल घावों की जलन और खुजली को शांत करता है। यह तेल ठीक न होने वाले घावों, फोड़े-फुंसियों, एक्जिमा (eczema), खुले घावों (open wounds), कटने और जलने के उपचार में भी फायदेमंद है।
जात्यादि तेल के घटक द्रव्य (सामग्री) क्या हैं? – (What Are the Ingredients of Jatyadi Tail (Oil) in Hindi?)
जात्यादि तेल (jatyadi tel) के घटक द्रव्यों (सामग्री) में निम्नलिखित शामिल हैं (1):
घटक द्रव्य का सामान्य नाम | घटक द्रव्य का वैज्ञानिक नाम | घटक द्रव्य की मात्रा |
जायफल (जातीफल) | Myristica fragrans | 10.55 ग्राम |
सारिवा | Hemidesmus indicus | 10.55 ग्राम |
नीम | Azadirachta indica | 10.55 ग्राम |
मंजिष्ठा | Rubia cordifolia | 10.55 ग्राम |
नील कमल | Nymphaea stellata | 10.55 ग्राम |
तुथ्य (नीला थोथा) | Copper Sulphate | 10.55 ग्राम |
हरिद्रा (हल्दी) | Curcuma longa | 10.55 ग्राम |
हरीतकी | Terminalia Chebula | 10.55 ग्राम |
पटोल पत्र | Stereospermum suaveolens | 10.55 ग्राम |
पद्मक | Prunus cerasoides | 10.55 ग्राम |
यष्टिमधु (मुलेठी) | Glycyrrhiza glabra | 10.55 ग्राम |
लोध्र | Symplocos racemosa | 10.55 ग्राम |
करंज पत्र | Pongamia Pinnata | 10.55 ग्राम |
मधुमोम (beeswax) | — | 10.55 ग्राम |
दारुहरिद्रा | Berberis aristata | 10.55 ग्राम |
कूठ (कुष्ठ) | Saussurea lappa | 10.55 ग्राम |
कुटकी | Picrorhiza kurroa | 10.55 ग्राम |
करंज बीज | Pongamia Pinnata | 10.55 ग्राम |
तिल का तेल | Sesamum Indicum | 768 मिलीलीटर |
पानी | — | 3.072 लीटर |
जात्यादि तेल के फायदे और उपयोग क्या हैं? – (What Are The Benefits and Uses of Jatyadi Tail (Oil) in hindi?)
जात्यादि तेल के मुख्य फायदे और उपयोग (main benefits and uses of Jatyadi tail (oil) in hindi) निम्नलिखित हैं:
1) एनल फिशर के लिए जात्यादि तेल के फायदे – (Jatyadi Tail (oil) Benefits for Anal Fissure in hindi)
एनल फिशर आमतौर पर कठोर मल या गंभीर दस्त (severe diarrhea) के परिणामस्वरूप होता है। खान-पान की गलत आदतें और बहुत मसालेदार भोजन खाने से स्थिति और खराब हो सकती है। जात्यादि तेल को बाह्य रूप से (topically) लगाने से एनल फिशर जल्दी ठीक हो जाता है। यह तेल प्रभावी रूप से दर्द को कम करता है, और फिशर को जल्दी ठीक करता है।
एनल फिशर (गुदा विदर) के मामूली मामलों में इस तेल का बाहरी उपयोग बहुत फायदेमंद होता है, लेकिन गंभीर मामलों में शीघ्र स्वस्थ होने के लिए गंधक रसायन, यष्टिमधु चूर्ण, रजत भस्म आदि जैसी मौखिक दवाओं के साथ-साथ जात्यादि तेल के बाह्य उपयोग की आवश्यकता हो सकती है। .
2) फ़िस्टुला के लिए जात्यादि तेल के फ़ायदे – (Jatyadi Tail (Oil) Uses for Fistula in hindi)
जात्यादि तेल का उपयोग त्वचा के सभी प्रकार के घावों के इलाज के लिए बड़े पैमाने पर किया जाता है। यह घावों में संक्रमण को रोकने में मदद करता है।
जब इस तेल का बाह्य उपयोग (topical application) त्रिफला गुग्गुलु या अमृतादि गुग्गुलु जैसी मौखिक आयुर्वेदिक औषधियों के साथ किया जाता है, तो फिस्टुला के मामूली मामलों में संक्रमण को ठीक किया जा सकता है।
3) बवासीर के लिए जात्यादि तेल के फायदे – (Jatyadi Tail (Oil) Uses for Piles in hindi)
इस अद्भुत हर्बल तेल का उपयोग बवासीर को ठीक करने और इसके लक्षणों जैसे दर्द, खुजली, जलन आदि से राहत पाने के लिए किया जाता है।
इस तेल को मलाशय और गुदा क्षेत्र के आसपास लगाने से मल को आसानी से निकलने में मदद मिलती है और गुदा के आसपास की सूजन कम हो जाती है।
अर्शोघ्नी वटी के साथ-साथ इस तेल का सामयिक (topical) प्रयोग खूनी बवासीर (bleeding piles) में भी लाभकारी होता है।
4) जात्यादि तेल के अन्य फायदे – (Other Benefits of Jatyadi Tail (Oil) in hindi)
इस आयुर्वेदिक हर्बल तेल में मजबूत एंटीसेप्टिक गुण होते हैं, जो घावों को कीटाणुओं से बचाते हैं और घाव भरने की प्रक्रिया को तेज करते हैं। यह तेल त्वचा की लालिमा और सूजन को भी कम करता है।
चूहों पर किए गए एक अध्ययन से भी पता चला है कि जात्यादि तेल घाव भरने में काफी प्रभावी है (2)।
जात्यादि तेल का बाह्य (सामयिक) प्रयोग इनके उपचार में उपयोगी है:
- फफोले (blisters)
- एब्सेस (abscess)
- साइनस (sinus)
- फटी एड़ियाँ (cracked heels)
- जानवर के काटने का घाव (animal bite wounds)
- त्वचा रोग जैसे एक्जिमा (eczema), हाथ पैर और मुंह की बीमारी (Hand Foot and Mouth Disease), सिफलिस (syphilis) आदि,
- जलना या बर्न्स (burns) – पहली और दूसरी डिग्री के बर्न्स
- क्रैक्ड निप्पल्स अथवा फटे निपल्स (cracked nipples)
- ठीक न होने वाले घाव (non healing Wounds)
जात्यादि तेल के नुकसान (दुष्प्रभाव) क्या हैं? – (What Are the Side Effects of Jatyadi tail (Oil) in hindi?)
जात्यादि तेल (jatyadi tel) का कोई नुकसान (दुष्प्रभाव) नहीं है और इसका बाह्य उपयोग अधिकांश लोगों के लिए सुरक्षित है।
इसके आकस्मिक मौखिक सेवन से गंभीर नुकसान (दुष्प्रभाव) हो सकते हैं। अत: इस तेल का केवल बाहरी (external) उपयोग ही किया जाना चाहिए।
गर्भवती महिलाएं और स्तनपान कराने वाली माताएं फिशर (fissure), बवासीर या किसी भी त्वचा की चोट में बाह्य (सामयिक – topical) प्रयोग के लिए जात्यादि तेल का सुरक्षित रूप से इस्तेमाल कर सकती हैं।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
क्या जात्यादि तेल का उपयोग गर्भावस्था और स्तनपान के दौरान सुरक्षित है? – (Is Jatiyadi oil safe to use during pregnancy and breastfeeding in hindi?)
हां, गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माताओं में इस तेल का बाह्य उपयोग सुरक्षित है। लेकिन गर्भावस्था और स्तनपान में इसका उपयोग करने से पहले हमेशा अपने डॉक्टर से परामर्श लेना चाहिए।
जात्यादि तेल का उपयोग कैसे करें? – (How to use Jatyadi Tail (Oil) in hindi?)
बवासीर और एनल फिशर (anal fissure) के लिए जात्यादि तेल (jatyadi tel) का उपयोग आपको निम्नलिखित तरीके से करना चाहिए:
- सबसे पहले एक साफ और सूखा रुई का फाहा (cotton swab) लें और उसे जात्यादि तेल में डुबोएं।
- इसे (कॉटन स्वैब) गुदा पर और उसके आसपास लगाएं।
सर्वोत्तम परिणाम प्राप्त करने के लिए, आपको इस तेल को दिन में कम से कम चार बार लगाना चाहिए:
1) मल त्यागने से पहले
2) मल त्यागने के बाद
3) सुबह स्नान करने के बाद
4) रात को सोने से पहले
संदर्भ (References):
1) Sharangdhar Samhita, Madhyam Khanda, 9/168-172.
2) Wound healing efficacy of Jatyadi Taila: in vivo evaluation in rat using excision wound model
https://pubmed.ncbi.nlm.nih.gov/21907784/
3) Jatyadi Taila (Oil): Uses, Benefits, & Side Effects
अस्वीकरण (Disclaimer):
इस लेख में जानकारी आपके ज्ञान के लिए दी गयी है| किसी भी उपाय/नुस्खे/दवा आदि को इस्तेमाल करने से पहले अपने चिकित्सक से सलाह जरूर कर लें, क्योंकि वो आपके स्वास्थ्य के बारे में ज्यादा जानता है|
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