साइटिका पेन अथवा कटिस्नायुशूल क्या है? क्या आपको भी यह दर्द है? और क्या आप भी इसके बारे में पूरी जानकारी प्राप्त करना चाहते हैं? तो आइए, इस लेख में मैं आपको साइटिका (सायटिका) बीमारी के कारण, लक्षण, जोखिम कारक, और इलाज (causes, symptoms, risk factors, and treatment of sciatica pain in hindi) के बारे में सारी जानकारी प्रदान करूंगा।
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साइटिका क्या है? – (What is Sciatica Disease in hindi?)
सायटिका अथवा साइटिका, जिसे अक्सर सामान्य पीठ दर्द समझ लिया जाता है, केवल पीठ तक ही सीमित नहीं होता है; यह दर्द, सुन्नता (numbness) और झुनझुनी (tingling) का कारण बनता है जो साइटिक तंत्रिका (sciatic nerve) के रास्ते में फैलता है।
साइटिक तंत्रिका (sciatic nerve) आपकी पीठ के निचले हिस्से से आपके कूल्हों और नितंबों के माध्यम से तथा प्रत्येक टांग से होकर, घुटने के ठीक नीचे समाप्त होती है।
साइटिका (कटिस्नायुशूल) को साइटिक न्यूराल्जिया (sciatic neuralgia) के रूप में भी जाना जाता है और यह कई स्पाइनल विकारों (spinal disorders) का एक सामान्य लक्षण है। हालाँकि यह कोई खतरनाक स्थिति नहीं है, लेकिन यह आपके दैनिक जीवन में गंभीर रूप से हस्तक्षेप कर सकती है।
इस स्थिति की विशेषता साइटिक तंत्रिका का संपीड़न (compression) है। कुछ मामलों में, यह अन्य तंत्रिकाओं, विशेष रूप से स्पाइनल तंत्रिका (spinal nerve) में भी समस्या पैदा कर सकता है, जिससे व्यक्ति लकवाग्रस्त हो सकता है।
कटिस्नायुशूल आमतौर पर शरीर के एक तरफ होता है, लेकिन दोनों तरफ भी हो सकता है। यह तीव्र या दीर्घकालिक हो सकता है।
बहुत से लोग साइटिका बीमारी से पीड़ित हैं, लेकिन उन्हें इसके बारे में सारी जानकारी नहीं है। इस लेख के माध्यम से आप इस स्थिति के बारे में पूर्णतया जान जाएंगें।
साइटिका के कारण क्या हैं? – (What Are The Causes of Sciatica Disease in hindi)
कई स्थितियाँ जो आपकी रीढ़ (spine) को प्रभावित करती हैं और आपकी पीठ के साथ चलने वाली नसों को प्रभावित करती हैं, कटिस्नायुशूल का कारण बन सकती हैं। यह स्पाइनल (spinal) या साइटिक तंत्रिका का ट्यूमर, अथवा चोट जैसे गिरना आदि के कारण भी हो सकता है।
यहां नीचे मैं उन सामान्य स्थितियों का वर्णन कर रहा हूं जो साइटिका का कारण बन सकती हैं:
1) हर्नियेटेड डिस्क (Herniated discs)
आपकी कशेरुकाएं (vertebrae) नरम पैड से अलग होती हैं जिन्हें डिस्क (disc) कहा जाता है जो उपास्थि से बनी होती हैं। चलते समय लचीलेपन को सुनिश्चित करने के लिए यह उपास्थि एक मोटी और स्पष्ट सामग्री (thick and clear material) से भरी होती है।
हर्नियेटेड या स्लिप्ड डिस्क तब होती है जब डिस्क अपनी जगह से हट जाती है, जिससे साइटिक तंत्रिका पर दबाव पड़ता है, जिसके परिणामस्वरूप निचले अंगों में दर्द और सुन्नता होती है। यह साइटिका (सायटिका) का सबसे आम कारण है।
2) डिजेनरेटिव डिस्क डिसीज़ (Degenerative Disc Disease)
जैसे-जैसे आपकी उम्र बढ़ती है, आपकी वर्टेब्रल डिस्क (vertebral disc) खराब हो सकती है। यदि डिस्क बहुत पतली हो जाती है, तो प्रत्येक कशेरुका के बीच की जगह सिकुड़ जाती है और साइटिक तंत्रिका की जड़ (sciatic nerve root) पर दबाव पड़ता है, जिससे दर्द हो सकता है। यदि डिस्क का बाहरी आवरण घिस जाता है, तो डिस्क से तरल पदार्थ बाहर निकल सकता है और साइटिक तंत्रिका में जलन (irritation) पैदा कर सकता है।
3) स्पोंडिलोलिस्थीसिस (Spondylolisthesis)
कुदरत ने आपकी पीठ में कशेरुकाओं को स्थिरता के लिए एक दूसरे के ऊपर टिकने के लिए डिज़ाइन किया है। पीठ के निचले हिस्से में एक कशेरुका का खिसकना जिससे कि यह ऊपर वाले कशेरुका के साथ लाइन से बाहर हो, (यह स्थिति स्पोंडिलोलिस्थीसिस कहलाती है), साइटिक तंत्रिका पर दबाव डाल सकती है।
4) बोन स्पर्स (Bone Spurs)
कशेरुकाओं पर हड्डी (ऑस्टियोफाइट) की अत्यधिक वृद्धि भी साइटिक तंत्रिका की जड़ (sciatic nerve root) पर दबाव डाल सकती है। ऐसा अक्सर तब होता है जब ऑस्टियोआर्थराइटिस (osteoarthritis) कशेरुकाओं को प्रभावित करता है।
5) वर्टेब्रल फ्रैक्चर या कशेरुका फ्रैक्चर (Vertebral Fracture)
कशेरुका, जो पीठ के निचले हिस्से (lumbar region) में एक जोड़ (पार्स इंटरआर्टिकुलरिस) बनाती है, पर आघात के कारण दरार या फ्रैक्चर (स्पोंडिलोलिसिस के रूप में जानी जाने वाली स्थिति) साइटिक तंत्रिका को संकुचित कर सकता है।
6) स्पाइनल स्टेनोसिस (Spinal Stenosis)
स्पाइनल स्टेनोसिस जिसे लम्बर स्पाइनल स्टेनोसिस (lumbar spinal stenosis) भी कहा जाता है, एक ऐसी स्थिति है जो आपकी निचली स्पाइनल कैनाल (lower spinal canal) के असामान्य संकुचन (narrowing) के कारण होती है। यह संकुचन स्पाइनल कार्ड (spinal cord) और साइटिक तंत्रिका के लिए उपलब्ध स्थान को कम कर देता है, जिससे संपीड़न (compression) होता है। स्पाइनल स्टेनोसिस उम्र बढ़ने या गठिया के कारण हो सकता है।
7) पिरिफोर्मिस सिंड्रोम (Piriformis Syndrome)
पिरिफोर्मिस मांसपेशी (piriformis muscle) एक सपाट बैंड जैसी मांसपेशी है जो आपकी स्पाइन के निचले हिस्से को आपकी जांघों से जोड़ती है। यह एक छोटी मांसपेशी है जो नितंबों में साइटिक तंत्रिका के शीर्ष पर स्थित होती है।
पिरिफोर्मिस सिंड्रोम एक ऐसी स्थिति है जब यह मांसपेशी अनैच्छिक रूप से सिकुड़ती है या कस जाती है, तो यह साइटिक तंत्रिका को दबा देती है। पिरिफोर्मिस सिंड्रोम के लक्षण सीढ़ियां चढ़ने, लंबे समय तक बैठने, गिरने, दौड़ने या कार दुर्घटना आदि के बाद खराब हो सकते हैं। यह एक असामान्य न्यूरोमस्कुलर विकार (neuromuscular disorder) है।
8) स्पाइन के ट्यूमर (Tumors Within The Spine)
लम्बर स्पाइनल कैनाल (lumbar spinal canal) में ट्यूमर साइटिक तंत्रिका को दबा सकते हैं।
9) कॉडा इक्विना सिंड्रोम (Cauda Equina Syndrome)
कॉडा इक्विना सिंड्रोम एक दुर्लभ स्थिति है जो स्पाइनल कार्ड (spinal cord) के निचले हिस्से में तंत्रिकाओं (nerves) के बंडल, जिसे कॉडा इक्विना कहा जाता है, को प्रभावित करती है। इस सिंड्रोम के कारण पैर में दर्द होता है, आंत और मूत्राशय पर नियंत्रण खो जाता है, तथा गुदा के आसपास सुन्नता रहती है। यह एक गंभीर स्थिति है जिसके लिए तत्काल चिकित्सीय सहायता की आवश्यकता होती है।
साइटिका (सायटिका) बीमारी के लक्षण क्या हैं? – (What are The Symptoms of Sciatica Disease in hindi?)
साइटिका (कटिस्नायुशूल) बीमारी का मुख्य लक्षण साइटिक तंत्रिका के मार्ग (पीठ के निचले हिस्से से, नितंब से होते हुए, और आपके पैर के पिछले हिस्से तक) में कहीं भी मध्यम से गंभीर दर्द होना है।
सायटिका (साइटिका) बीमारी के अन्य सामान्य लक्षणों (Other common symptoms of sciatica pain in hindi) में निम्नलिखित शामिल हैं:
1) आपके पैरों, पंजों या टाँगों में झुनझुनी (पिन और सुई चुभने का एहसास) होना
2) दर्द जो हिलने-डुलने के साथ और भी बदतर हो जाता है
3) आपके पैर, टांग, नितंब या पीठ के निचले हिस्से में कमजोरी या सुन्नता होना
4) लंबे समय तक बैठे रहने से यह दर्द बढ़ सकता है
5) आंत और मूत्राशय पर नियंत्रण न रहना; यह कॉडा इक्विना सिंड्रोम का एक लक्षण है और इस पर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता होती है
साइटिका बीमारी का निदान कैसे करें? – (How to Diagnose Sciatica Disease in hindi?)
सायटिका (कटिस्नायुशूल) का निदान 3 महत्वपूर्ण कारकों के आधार पर किया जाता है और वे हैं:
1) चिकित्सा इतिहास (medical history)
2) शारीरिक परीक्षण (physical examination)
3) क्लिनिकल टेस्ट (clinical tests)
तो, आइए अब निदान के प्रत्येक कारक को अच्छे से समझें।
1) चिकित्सा इतिहास (medical history)
चिकित्सा इतिहास में डॉक्टर आपसे निम्नलिखित की विस्तृत रिपोर्ट प्रदान करने के लिए कहेगा:
- पैर की ताकत कम होना.
- पेल्विक क्षेत्र में मांसपेशियों में ऐंठन होना
- कूल्हे या पीठ के क्षेत्र में चोट या आघात
- दर्द और अन्य संबंधित लक्षणों का होना
- दर्द की अवधि, प्रकृति और प्रकार
2) शारीरिक परीक्षण (Physical Examination)
शारीरिक परीक्षण में डॉक्टर निम्नलिखित की जाँच करेगा:
- पैर, जांघ, नितंब और पीठ के निचले हिस्से में किसी भी प्रकार का दर्द
- कुछ उत्तेजनाओं के प्रति आपकी प्रतिक्रिया, जैसे पिंडली क्षेत्र या पैर की उंगलियों को धीरे से दबाना
- पैरों की गतिविधियों पर आपकी प्रतिक्रिया जैसे कि पैरों को सीधा करना आदि
3) क्लिनिकल टेस्ट (Clinical Tests)
आपका डॉक्टर सायटिका (कटिस्नायुशूल) की जांच के लिए कुछ क्लिनिकल टेस्ट भी कर सकता है। इनमें निम्नलिखित शामिल हैं:
क) स्लंप टेस्ट (Slump test)
यह परीक्षण निम्न तरह से किया जाता है:
1) सबसे पहले, रोगी को पीठ के पीछे हाथ रखकर सीधा बैठाया जाता है।
2) फिर रोगी को कूल्हे के बल आगे की ओर झुकाया जाता है।
3) इसके बाद उसे अपनी ठुड्डी को छाती से छूते हुए गर्दन को नीचे झुकाने और एक घुटने को यथासंभव फैलाने के लिए कहा जाता है।
यदि दर्द होता है, तो समस्या संभवतः साइटिका है।
ख) स्ट्रेट लेग रेज टेस्ट – (Straight Leg Raise (SLR) Test)
इस परीक्षण के लिए मरीज को पीठ के बल लिटा दिया जाता है। फिर, डॉक्टर उसके एक पैर को उठाता है जबकि दूसरे पैर को घुटने से मोड़कर या सीधा रखता है। फिर दूसरे पैर के लिए भी यही दोहराया जाता है। अगर इसे करते समय किसी पैर में दर्द होता है तो यह आमतौर पर साइटिका का संकेत है।
4) साइटिका (सायटिका) पेन के लिए मेडिकल इमेजिंग परीक्षण – (Medical Imaging Tests for Sciatica Pain in hindi)
कभी-कभी सायटिका (कटिस्नायुशूल) का संदेह होने पर डॉक्टर मेडिकल इमेजिंग परीक्षण के लिए कहते हैं। इन परीक्षणों का उद्देश्य कटिस्नायुशूल के कारण की पुष्टि करना है। इमेजिंग परीक्षण में एक्स-रे, एमआरआई, सीटी स्कैन और इलेक्ट्रोमायोग्राफी (ईएमजी) शामिल हैं।
क) स्पाइनल एक्स-रे – (Spinal X-rays)
स्पाइनल एक्स-रे स्पाइनल फ्रैक्चर, डिस्क की समस्या, संक्रमण, ट्यूमर और बोन स्पर्स का पता लगाने के लिए किया जाता है।
ख) कंप्यूटेड टोमोग्राफी (सीटी) स्कैन – (Computed Tomography or CT Scan)
यह आपकी स्पाइनल कार्ड और स्पाइनल नर्व (spinal nerves) पर बेहतर नज़र डालने के लिए एक्स-रे की एक श्रृंखला को जोड़ता है।
ग) एमआरआई – (Magnetic Resonance Imaging – MRI)
एमआरआई में पीठ की हड्डी और कोमल ऊतकों का विस्तृत रूप देखने के लिए रेडियो तरंगों और चुम्बकों का उपयोग किया जाता है। एमआरआई डिस्क हर्नियेशन, तंत्रिका पर दबाव और किसी भी गठिया संबंधी स्थिति को दिखा सकती है जो तंत्रिका पर दबाव डाल रही हो। कटिस्नायुशूल के निदान की पुष्टि करने के लिए आमतौर पर एमआरआई का उपयोग किया जाता है।
घ) इलेक्ट्रोमायोग्राफी (ईएमजी) – (Nerve conduction velocity studies/Electromyography)
इलेक्ट्रोमायोग्राफी का उपयोग साइटिक तंत्रिका के माध्यम से विद्युत आवेग कितनी अच्छी तरह से यात्रा करते हैं और मांसपेशियों की प्रतिक्रिया जांचने के लिए किया जाता है।
ङ) मायलोग्राम (Myelogram)
मायलोग्राम का उपयोग यह निर्धारित करने के लिए किया जाता है कि दर्द का कारण कशेरुका या डिस्क है या नहीं।
साइटिका (कटिस्नायुशूल) बीमारी की रोकथाम – (Prevention of Sciatica Disease in hindi)
हालाँकि कटिस्नायुशूल के कुछ कारणों को रोका नहीं जा सकता है जैसे कि गर्भावस्था या डिजेनरेटिव डिस्क डिसीज़ के कारण होने वाला कटिस्नायुशूल। लेकिन कुछ उपाय हैं जो पीठ की सुरक्षा में मदद कर सकते हैं और इससे आपका जोखिम भी कम हो सकता है। मैं आगे यहां बता रहा हूँ कि आप साइटिका की रोकथाम के लिए क्या कर सकते हैं:
1) उचित मुद्रा बनाए रखें (Maintain proper posture)
बैठते, सोते, सामान उठाते और खड़े होते समय अच्छी और उचित मुद्रा बनाए रखें। इससे आपकी पीठ के निचले हिस्से पर दबाव से राहत पाने में मदद मिलेगी। यदि आपको अकड़न या दर्द महसूस होने लगे तो आपको अपनी मुद्रा को समायोजित (adjust) करना चाहिए।
2) नियमित रूप से व्यायाम करें (Exercise Regularly)
अपनी पीठ को मजबूत रखने के लिए, आपको अपने पेट और पीठ के निचले हिस्से की मांसपेशियों पर विशेष ध्यान देना चाहिए। अपनी इन मांसपेशियों को मजबूत करने के लिए नियमित रूप से व्यायाम करें, क्योंकि ये मांसपेशियां आपकी रीढ़ को सहारा देने का काम करती हैं। इसके लिए आपका डॉक्टर विशिष्ट गतिविधियों की सिफारिश भी कर सकता है।
3) ऐसी शारीरिक गतिविधियाँ चुनें जो आपकी पीठ को चोट न पहुँचाएँ (Choose physical activities that don’t hurt your back)
ऐसी शारीरिक गतिविधियाँ करें जिनमें आपकी पीठ को चोट पहुँचने की संभावना न हो, जैसे योग, पैदल चलना या तैराकी आदि।
4) स्वस्थ वजन बनाए रखें (Maintain a healthy weight)
अतिरिक्त वजन या मोटापा आपके पूरे शरीर में सूजन और दर्द से जुड़ा है। आपका वजन अपके शरीर के स्वस्थ या आदर्श वजन के जितना करीब रहेगा, आपकी रीढ़ पर उतना ही कम दबाव पड़ेगा।
5) अपने आप को गिरने से सुरक्षित रखें (Keep yourself safe from falls)
आपको खुद को गिरने से बचाना चाहिए और इसके कुछ उपायों का पालन करना चाहिए, जैसे:
- ऐसे जूते पहनें जो ठीक से फिट हों
- सुनिश्चित करें कि आपके कमरे में अच्छी रोशनी हो
- सीढ़ियों पर रेलिंग और बाथरूम में ग्रैब बार होना चाहिए
6) अच्छे बॉडी मैकेनिक्स का उपयोग करें (Use good body mechanics)
जब आप कोई भारी वस्तु उठाएं तो अपने निचले अंगों को काम करने दें यानी सीधे ऊपर और नीचे चलें। अपनी पीठ सीधी रखने की कोशिश करें और केवल घुटनों पर झुकें। आपको भारी वस्तु को अपने शरीर के पास रखना चाहिए। भारी वस्तु को उठाते समय किसी अन्य साथी की सहायता लें।
7) धूम्रपान से बचें (Avoid smoking)
धूम्रपान से बचें क्योंकि निकोटीन आपकी हड्डियों में रक्त की आपूर्ति को कम कर देता है। इस प्रकार, यह आपकी स्पाइन और वर्टेब्रल डिस्क (vertebral disks) को कमजोर कर देता है, जिससे पीठ और स्पाइन की समस्याएं हो जाती हैं।
साइटिका बीमारी के जोखिम कारक – (Risk Factors for sciatica Pain in hindi)
सायटिका (कटिस्नायुशूल) के जोखिम कारकों (risk factors for sciatica in hindi) में निम्नलिखित शामिल हैं:
1) धूम्रपान (Smoking)
तम्बाकू में मौजूद निकोटीन हड्डियों को कमजोर कर सकता है, स्पाइनल ऊतकों (spinal tissues) को नुकसान पहुंचा सकता है और वर्टेब्रल डिस्क के घिसने में तेजी ला सकता है।
2) निष्क्रिय जीवनशैली जीना (Leading an inactive lifestyle)
निष्क्रिय जीवनशैली जैसे लंबे समय तक खाली बैठे रहना, कोई व्यायाम न करना और मांसपेशियों को न हिलाना साइटिका के विकास के जोखिम को बढ़ा सकता है।
3) ऑस्टियोआर्थराइटिस (Osteoarthritis)
इस स्थिति से स्पाइन को नुकसान हो सकता है और नसों को क्षति पहुँचने का खतरा बढ़ जाता है।
4) मधुमेह (Diabetes)
मधुमेह आपके शरीर द्वारा रक्त शर्करा का उपयोग करने के तरीके को प्रभावित करती है जिससे अंततः तंत्रिका क्षति का खतरा बढ़ जाता है और परिणामस्वरूप कटिस्नायुशूल हो सकता है।
5) शक्ति प्रशिक्षण अभ्यासों में उचित मुद्रा का अभाव (Lacking proper posture in strength training exercises)
शारीरिक रूप से सक्रिय और फिट रहने के बाद भी, वजन उठाने आदि जैसे शक्ति प्रशिक्षण अभ्यासों (strength training exercises) के दौरान सही शारीरिक मुद्रा का पालन न करने पर व्यक्ति को साइटिका की समस्या हो सकती है।
6) पेशा (Occupation)
यदि आप ऐसी नौकरी करते हैं जिसमें आपको लंबे समय तक बैठना पड़ता है या भारी वजन उठाना पड़ता है तो पीठ के निचले हिस्से की समस्याओं का खतरा बढ़ जाता है।
7) एक मजबूत कोर का अभाव (Lacking a strong core)
पीठ और पेट की मांसपेशियों को कोर मांसपेशियां (core muscles) कहा जाता है। ये मांसपेशियां पीठ के निचले हिस्से के लिए एकमात्र सहारा हैं और एक मजबूत कोर (core) की कमी के कारण पीठ के निचले हिस्से को कमजोर सहारा मिलता है।
8) मोटापा (Obesity)
शरीर का अधिक वजन रीढ़ (spine) में परिवर्तन का कारण बन सकता है और रीढ़ पर तनाव बढ़ा सकता है। इससे साइटिका हो सकता है।
9) आयु (Age)
उम्र के कारण रीढ़ (spine) में होने वाले बदलाव, जैसे बोन स्पर्स (bone spurs) और हर्नियेटेड डिस्क, कटिस्नायुशूल के खतरे को बढ़ा सकते हैं।
10) पहले या वर्तमान में चोट लगना (Having injury previously or at present)
यदि आपकी रीढ़ (स्पाइन) या पीठ के निचले हिस्से में चोट है, तो आपको साइटिका (सायटिका) विकसित होने का अधिक खतरा हो सकता है।
साइटिका (कटिस्नायुशूल) बीमारी का इलाज – (Sciatica Pain Treatment in hindi)
साइटिका (कटिस्नायुशूल) बीमारी के इलाज (sciatica pain treatment in hindi) का मुख्य लक्ष्य प्रभावित क्षेत्र में दर्द को शांत करना और आपकी गतिशीलता को बढ़ाना है। इसके इलाज में स्व-देखभाल उपचार (self-care treatment), चिकित्सकीय दवाएं, फिजियोथेरेपी, स्पाइनल इंजेक्शन, वैकल्पिक चिकित्सा और सर्जरी शामिल हैं। किसी विशेष मामले के लिए प्रभावी उपचार की संख्या और तरीका चोट के लक्षणों और तीव्रता पर निर्भर करती है। तो, आइए आगे जानते हैं कि विभिन्न कटिस्नायुशूल उपचार कैसे काम करते हैं।
1) स्व-देखभाल उपचार (Self-Care Treatments)
क) बर्फ और/या हॉट पैक का इस्तेमाल (Ice and/or Hot Packs Application)
जब आपको लगे कि आपको साइटिका का दर्द है तो सबसे पहली चीज़ जो आपको घर पर करने की ज़रूरत है वह है प्रभावित क्षेत्र पर आइस पैक लगाना। इसके लिए आप जमी हुई सब्जियों के बैग का भी उपयोग कर सकते हैं। इससे सूजन और दर्द को कम करने में मदद मिलती है। इसे दिन में कई बार, और प्रत्येक बार 20 मिनट के लिए लगाया जा सकता है। इसके अलावा, आप पहले कुछ दिनों के बाद हीटिंग पैड या हॉट पैक का उपयोग करने का प्रयास कर सकते हैं।
ख) हल्के स्ट्रेच करें (Perform Gentle Stretches)
उन स्ट्रेच को सीखें और करें जो पीठ के निचले हिस्से के दर्द को कम करने में मदद करते हैं। आप एरोबिक व्यायाम (aerobic exercises), कोर मांसपेशियों को मजबूत बनाने वाले व्यायाम भी कर सकते हैं।
ग) ओवर-द-काउंटर दवाएं लें (Take Over-The-Counter (OTCs) Medicines)
ऐसी दवाएं लें जो दर्द और सूजन को कम करने में मदद करती हैं। आमतौर पर इस्तेमाल की जाने वाली कुछ ओवर-द-काउंटर (ओटीसी) दवाओं में नेप्रोक्सन (naproxen), इबुप्रोफेन (ibuprofen), एस्पिरिन (aspirin) आदि शामिल हैं।
लेकिन किसी भी ओवर-द-काउंटर दवा को लेने से पहले अपने डॉक्टर से परामर्श करना बेहतर है।
2) साइटिका (कटिस्नायुशूल) के लिए अन्य उपचार विकल्प – (Other Treatment Options For Sciatica Pain in hindi)
स्व-देखभाल उपचार (self-care treatment) को 6 सप्ताह तक ही करें और यदि यह इतने समय के भीतर राहत प्रदान नहीं करता है, तो आपको डॉक्टर से परामर्श करना चाहिए तथा अन्य उपचार विकल्पों की सहायता लेनी चाहिए। तो आइए आगे जानते हैं कि सायटिका (कटिस्नायुशूल) बीमारी के इलाज (sciatica pain treatment in hindi) के लिए अन्य क्या विकल्प उपलब्ध हैं।
क) प्रिस्क्रिप्शन दवाएँ (Prescription Medications)
आपका डॉक्टर आपकी स्थिति और आपके दर्द के स्तर का विश्लेषण करने के बाद कुछ दवाएं जैसे दर्द निवारक, मांसपेशियों को आराम देने वाली (muscle relaxants) और ट्राइसाइक्लिक एंटीडिप्रेसेंट (tricyclic antidepressants) दवाएं लिख सकता है। इन दवाओं में साइक्लोबेनज़ाप्राइन (cyclobenzaprine) आदि शामिल हैं।
ख) फिजिकल थेरेपी (Physical Therapy)
फिजिकल थेरेपी तंत्रिका पर दबाव कम करने में मदद करती है जिसके परिणामस्वरूप कटिस्नायुशूल का प्रभाव कम हो जाता है। फिजिकल थेरेपिस्ट यह सुझाव दे सकता है कि आपकी विशेष स्थिति के अनुसार कौन सा व्यायाम या चिकित्सा बेहतर होगी। इन व्यायामों में स्ट्रेचिंग व्यायाम, एरोबिक व्यायाम (जैसे वॉटर एरोबिक्स, तैराकी, पैदल चलना आदि) और अन्य व्यायाम शामिल हैं जो पैरों, पेट और पीठ को मजबूत बनाने में मदद करते हैं।
ग) स्पाइनल इंजेक्शन (Spinal Injections)
कॉर्टिकोस्टेरॉइड (corticosteroid) दवा का इंजेक्शन प्रभावित तंत्रिका और उसके आसपास सूजन को कम करने में मदद करता है। यह इंजेक्शन थोड़े समय के लिए, मुख्य रूप से 3 महीने तक, राहत देते हैं। आपका डॉक्टर इस इंजेक्शन की अनुशंसित खुराक की संख्या सुझा सकता है। इसके लंबे समय तक इस्तेमाल से कुछ गंभीर दुष्प्रभाव भी हो सकते हैं।
घ) वैकल्पिक उपचार (Alternative Therapies)
आजकल साइटिका दर्द के इलाज और प्रबंधन के लिए वैकल्पिक उपचार अधिक लोकप्रिय हो रहे हैं। इन उपचारों में एक लाइसेंस प्राप्त कायरोप्रैक्टर (licensed chiropractor) द्वारा काइरोप्रैक्टिक उपचार प्राप्त करना शामिल है। इसके अलावा, बायोफीडबैक थेरेपी (biofeedback therapy), मालिश (massage), एक्यूपंक्चर (acupuncture), योग (yoga) आदि साइटिका दर्द में सुधार के अन्य वैकल्पिक तरीके हैं।
3) शल्य चिकित्सा (Surgery)
जब इस बीमारी के अन्य उपचारों में कोई मदद नहीं मिलती तो सर्जरी ही आखिरी विकल्प होता है। सर्जरी हर्नियेटेड डिस्क के हिस्से या बोन स्पर्स को हटाकर की जाती है। सर्जरी आमतौर पर तब आपके डॉक्टर द्वारा सुझाई जाती है जब:
- दर्द लगातार बढ़ता जाता है और समय के साथ खराब हो जाता है
- मूत्राशय या आंत पर नियंत्रण नहीं रहता है
- बहुत ज्यादा कमजोरी रहती है
- किसी अन्य उपचार से कोई राहत नहीं मिल रही हो
सायटिका की जटिलताएँ क्या हैं? – (What are The Complications of Sciatica in hindi?)
जबकि ज्यादातर मामलों में लोग साइटिका से पूरी तरह ठीक हो जाते हैं। लेकिन कुछ मामलों में, जब तंत्रिका से दबाव कम नहीं होता है तो यह कुछ जटिलताएँ पैदा कर सकता है। ऐसे मामलों में जटिलताएं निम्नलिखित हो सकती हैं:
- दर्द का बढ़ जाना
- स्थायी तंत्रिका क्षति
- मूत्राशय या आंत पर नियंत्रण नहीं रहना
- प्रभावित पैर में कमज़ोरी अथवा संवेदना की हानि
- स्लिप्ड या हर्नियेटेड डिस्क
जिन लोगों को साइटिका है, उनके लिए आउटलुक (पूर्वानुमान) क्या है? – (What Is The Outlook (Prognosis) For People Who Have Sciatica Disease In Hindi?)
साइटिका बीमारी का समग्र आउटलुक (पूर्वानुमान) अच्छा है और अधिकांश मामलों में इसका इलाज संभव है। इसके लिए कुछ स्व-देखभाल उपचार की आवश्यकता होती है और समय के साथ यह अपने आप ठीक हो जाता है। स्वस्थ जीवनशैली के साथ-साथ, दर्द से राहत देने वाली दवा, व्यायाम और आत्म-देखभाल (self-care) साइटिका दर्द से राहत पाने के लिए सबसे अच्छा काम करते हैं। लगभग 80 से 90% लोगों को इस बीमारी से ठीक होने के लिए सर्जरी की आवश्यकता नहीं होती है। अधिकांश लोग 6 सप्ताह के भीतर कटिस्नायुशूल के एक एपिसोड (episode of sciatica) से पूरी तरह ठीक हो जाते हैं।
आशा करता हूँ कि आपको साइटिका बीमारी के बारे में सारी समझ आ गई होगी। अगर आप भी इस दर्द से पीड़ित हैं तो घबराने की जरूरत नहीं है क्योंकि समय के साथ यह पूरी तरह से ठीक हो सकता है। साथ ही, मैं आपको हमेशा सलाह देता हूं कि किसी भी संदेह की स्थिति में अपने डॉक्टर से परामर्श लें।
संदर्भ (References):
1) Sciatica: Causes, Symptoms, Diagnosis, & Treatment
अस्वीकरण (Disclaimer):
इस लेख में जानकारी आपके ज्ञान के लिए दी गयी है| किसी भी उपाय/नुस्खे/दवा आदि को इस्तेमाल करने से पहले अपने चिकित्सक से सलाह जरूर कर लें, क्योंकि वो आपके स्वास्थ्य के बारे में ज्यादा जानता है|
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